वृक्षों से हमारे पूर्वजों का तथा हमारा पुराना संबंध रहा है। ये हमारी सुख-शांति समृद्धि के आधार हैं। भारतीय संस्कृति में वृक्षों को पूजनीय मानते हुए उनमें देवताओं का वास माना गया है। धर्मग्रंथों में वृक्षों के महत्व का वर्णन है। रामचरितमानस के मुख्य वक्ता कागभुसुंडि की पूरी दिनचर्या वृक्षों के सानिध्य में ही होती थी।
पर्यावरण के प्रति सजगता और पौध-रोपण के प्रति सतर्कता हमारी पुरातन परम्परा है। हमारी संस्कृति में पौध रोपण को शुभकार्य माना गया है। हमारे कई ऋषि मुनियों ने वृक्षों के नीचे तपस्या कर ईश्वर से साक्षात्कार किया है। भगवान बुद्ध के जीवन की सभी घटनायें वृक्षों की छाया में घटीं । जन्म शालवन में एक वृक्ष की छाया में हुआ तथा प्रथम समाधि जामुन की छाया में, ज्ञान प्राप्ति पीपल वृक्ष की छाया में और महानिर्वाण साल वृक्ष की छाया में हुआ।
नारद संहिता में 27 नक्षत्रों की वनस्पति का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार नक्षत्रों के वृक्ष निम्नानुसार है -
1. अश्विनी - कुचिला, 2. भरणी - आंवला, 3. कृतिका - गूलर, 4. रोहिणी - जामुन, 5. मृगशिरा - खैर, 6. आर्द्रा - शीशम, 7. पुनर्वसु - बांस, 8. पुष्य - पीपल, 9. अश्लेषा - नागकेसर, 10. मघा - बरगद, 11. पूर्वा फाल्गुनी - पलास, 12. उत्तर फाल्गुनी -पाकड़ 13. हस्त - रीठा, 14. चित्रा - बेर, 15. स्वाति-अर्जुन, 16. विशाखा-कटाई, 17. अनुराधा- मौलश्री, 18. ज्येष्ठा - चीड,19. मूल - साल, 20.पूर्वाषाढ़ा- जलवेतास, 21. उत्तराषाढ़ा - कटहल, 22. श्रवण - आंकड़ा, 23. धनिष्ठा - खेजरी, 24. शतभिषा - कदम्व, 25. पूर्व भाद्रपद - आम, 26. उत्तर भाद्रपद - नीम, 27. रेवती - महुआ।
ज्योतिष शास्त्र में आक को सूर्य, पलास को चन्द्र, खैर को मंगल, अपामार्ग को बुध, पीपल को वृहस्पति, गूलर को शुक्र, शमी को शनि ग्रह का तथा दूब को राहु और कुश को केतु छाया ग्रह की वनस्पति माना गया है।
स्कंद पुराण के अनुसार पीपल, बेल, बरगद, आंवला और अशोक पांच पवित्र वृक्षों को पंचवटी कहा गया है। गोदावरी के तट पर इसी तरह की एक पंचवटी में भगवान राम ने निवास किया था। देशी चिकित्सा पद्धति में आंवला, अशोक, नीम, अर्जुन, बेल, जामुन, मौलश्री, कचनार, अमलतास, हरसिंगार, गुड़हल, गुलाब, गिलोय, सतावरी, तुलसी, ब्राह्मी, अश्वगंधा, हर्र, बहेरा आदि पौधों का औषधीय उपयोग किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि पीपल का पेड़ लगाने से धन की प्राप्ति होती है और इसके नीचे बैठ कर किये गये जप-तप और अनुष्ठान का फल अनंत होता है। इसी प्रकार अशोक का वृक्ष दुःख दूर करता है, नीम का वृक्ष आयु प्रदान करता है और खैर का वृक्ष लगाने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। चंदन को पुण्य, कटहल को लक्ष्मी और चंपा को सौभाग्य देने वाला माना गया है तथा मौलश्री के पौधे से कुल की वृद्धि होती है।
धर्म ग्रंथों में वृक्षों को नष्ट करना अपशगुन माना गया है। अशोक वाटिका उजड़ने पर सोने की लंका का जो हश्र हुआ उससे सभी परिचित हैं।
वर्तमान समय में पर्यावरण के प्रति जनचेतना तो बढ़ी है और वृक्षारोपण कार्यक्रम ने अब एक अनिवार्य नागरिक संस्कार का रूप भी ले लिया है। लेकिन नगरीय समाज अभी भी पेड़ पौधों के साथ वह आत्मीय संबंध स्थापित नहीं कर पाया है, जो उनके पूर्वज करते रहे हैं। स्वस्थ पर्यावरण की सभी को समान रूप से जरूरत है।
इसलिए पौध रोपण के पश्चात पौधों के संरक्षण और संवर्धन के लिए समाज को आगे आना चाहिए और वृक्षारोपण को एक स्वैच्छिक अनुष्ठान के रूप में चलाना चाहिए।प्रत्येक नागरिक के एक पौधे को लगाने और उसके संरक्षण व संवर्धन के लिए जिम्मेदार बनने पर ही वसुंधरा हरियाली से सतत समृद्ध होती रहेगी। इससे पर्यावरण भी स्वच्छ रहेगा और समाज भी स्वस्थ्य बना रहेगा।
आजकल लोग किसी कार्य को करने ले पहले ही उससे क्या मिलेगा ?
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